शाओमी सेमीकंडक्टर क्षेत्र में एक बार फिर बड़ा दांव लगाने जा रही है। कंपनी ने अपने खुद के एआई चिप्स विकसित करने के लिए भारी निवेश का ऐलान किया है, जिससे वह वैश्विक टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम में एक गंभीर दावेदार के रूप में उभरना चाहती है।
बीजिंग स्थित स्मार्टफोन और इलेक्ट्रिक व्हीकल निर्माता शाओमी ने घोषणा की है कि वह अगले दशक में चिप डिजाइनिंग पर कम से कम 50 अरब युआन (6.9 अरब डॉलर) का निवेश करेगी, जिसकी शुरुआत 2025 से होगी। कंपनी के प्रवक्ता ने इसकी पुष्टि की है। शाओमी के संस्थापक और सीईओ लेई जून ने इस पहल की रणनीतिक अहमियत पर जोर देते हुए कहा, "चिप्स वह शिखर हैं जिन्हें हमें फतह करना ही होगा, और यह एक कठिन लड़ाई है जिससे हम बच नहीं सकते, अगर हमें एक महान हार्ड टेक कंपनी बनना है।"
इस रणनीति का केंद्र बिंदु है आगामी Xring O1, जो 3-नैनोमीटर की अत्याधुनिक फैब्रिकेशन तकनीक पर आधारित एक सिस्टम-ऑन-चिप (SoC) है—जो इसे मौजूदा सबसे उन्नत प्रोसेसरों की श्रेणी में लाता है। इस चिप का आधिकारिक अनावरण 22 मई को एक बड़े प्रोडक्ट लॉन्च इवेंट में किया जाएगा, जिसमें एक नया स्मार्टफोन, टैबलेट और कंपनी की बहुप्रतीक्षित YU7 इलेक्ट्रिक एसयूवी भी पेश की जाएगी।
शाओमी की सेमीकंडक्टर यात्रा 2014 में शुरू हुई थी, जिसका परिणाम 2017 में उसके पहले मोबाइल प्रोसेसर—सर्ज S1—की लॉन्चिंग के रूप में सामने आया। हालांकि, बाद में कंपनी ने विभिन्न चुनौतियों के चलते कम जटिल चिप्स पर ध्यान केंद्रित किया। 2021 में शाओमी ने मोबाइल प्रोसेसर के क्षेत्र में अपनी महत्वाकांक्षाओं को फिर से जीवित किया और तब से अब तक चिप विकास में 13.5 अरब युआन (1.8 अरब डॉलर) से अधिक का निवेश कर चुकी है। कंपनी की सेमीकंडक्टर टीम में अब 2,500 से अधिक विशेषज्ञ कार्यरत हैं।
यह निवेश चीन के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में तकनीकी आत्मनिर्भरता की व्यापक रणनीति के अनुरूप है, खासकर जब वैश्विक प्रतिस्पर्धा तेज हो रही है। वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग के 2025 में 697 अरब डॉलर की बिक्री तक पहुंचने का अनुमान है, जिसमें एआई-आधारित तकनीकों से अगली पीढ़ी के चिप्स की मांग और बढ़ेगी। शाओमी के लिए, इन-हाउस चिप्स विकसित करना अमेरिकी सप्लायरों—जैसे क्वालकॉम—पर निर्भरता कम कर सकता है, जो अब तक उसके फ्लैगशिप स्मार्टफोन्स के लिए प्रोसेसर उपलब्ध कराते रहे हैं।
Xring O1 शाओमी के लिए सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह सेमीकंडक्टर क्षेत्र में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और भू-राजनीतिक जटिलताओं के बीच एक रणनीतिक कदम भी है, जहां चीनी कंपनियां अमेरिकी निर्यात प्रतिबंधों के बीच घरेलू क्षमताएं विकसित करने में जुटी हैं।