व्हाइट हाउस और कांग्रेस के अधिकारी एप्पल की उस योजना की बारीकी से जांच कर रहे हैं, जिसमें चीन में बिकने वाले आईफोन में अलीबाबा की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक को एकीकृत करने की बात है। न्यूयॉर्क टाइम्स की 17 मई, 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, यह जांच तब शुरू हुई जब अलीबाबा के चेयरमैन जो साई ने फरवरी में सार्वजनिक रूप से इस साझेदारी की पुष्टि की थी। उन्होंने कहा था कि एप्पल ने कई चीनी कंपनियों का मूल्यांकन करने के बाद अलीबाबा की एआई तकनीक को चुना है। इस सौदे के तहत अलीबाबा के क्वेन एआई मॉडल का उपयोग किया जाएगा, जिसे कंपनी ने अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनियों जैसे डीपसीक से बेहतर बताया है।
अमेरिकी अधिकारियों ने इस साझेदारी को लेकर तीन मुख्य चिंताएं जाहिर की हैं। पहली, उन्हें डर है कि यह सौदा किसी चीनी कंपनी की एआई क्षमताओं को बेहतर बना सकता है। दूसरी, अधिकारियों को आशंका है कि इससे सेंसरशिप के तहत चलने वाले चीनी चैटबॉट्स का दायरा बढ़ सकता है। तीसरी, यह सौदा एप्पल की बीजिंग के सेंसरशिप और डेटा-साझाकरण कानूनों के प्रति निर्भरता को और गहरा कर सकता है।
व्हाइट हाउस के अधिकारी और हाउस सिलेक्ट कमेटी ऑन चाइना के सदस्य एप्पल के अधिकारियों से सीधे इस सौदे की शर्तों, अलीबाबा के साथ साझा किए जाने वाले डेटा और चीनी नियामकों के प्रति एप्पल की प्रतिबद्धताओं के बारे में सवाल कर चुके हैं। इन बैठकों से परिचित सूत्रों के अनुसार, मार्च में हाउस कमेटी के साथ हुई बैठक में एप्पल के अधिकारी इन सवालों के अधिकांश जवाब नहीं दे सके।
हाउस परमानेंट सिलेक्ट कमेटी ऑन इंटेलिजेंस के रैंकिंग डेमोक्रेट, प्रतिनिधि राजा कृष्णमूर्ति ने अलीबाबा को 'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सैन्य-नागरिक एकीकरण रणनीति का प्रतीक' बताया और इस समझौते पर एप्पल की पारदर्शिता की कमी को 'बेहद चिंताजनक' कहा।
एप्पल के लिए यह साझेदारी चीन में अपनी स्थिति बनाए रखने के लिहाज से अहम है, जहां 2023 में उसकी बाजार हिस्सेदारी 19% से घटकर 2024 में 15% रह गई है और वह वीवो और हुआवे जैसी घरेलू कंपनियों से पीछे हो गया है। कंपनी को प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए एआई फीचर्स देने की जरूरत है, जैसा कि सीईओ टिम कुक ने भी स्वीकार किया है कि जिन बाजारों में एप्पल इंटेलिजेंस पेश किया गया है, वहां आईफोन की बिक्री बेहतर रही है।
इस जांच का परिणाम वैश्विक टेक कंपनियों के लिए एआई तकनीकों से जुड़े जटिल भू-राजनीतिक माहौल में आगे की राह तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, खासकर जब अमेरिका और चीन के बीच तनाव अंतरराष्ट्रीय तकनीकी नीतियों को आकार दे रहे हैं।