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AI हस्तलेखन विश्लेषण में सफलता: बच्चों में डिस्लेक्सिया की पहचान

यूनिवर्सिटी एट बफ़ेलो के शोधकर्ताओं ने एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली विकसित की है, जो बच्चों के हस्तलेखन का विश्लेषण कर डिस्लेक्सिया और डिस्ग्राफिया के शुरुआती संकेतों की पहचान करती है। SN कंप्यूटर साइंस में प्रकाशित इस तकनीक के ज़रिए हस्तलेखन के सूक्ष्म पैटर्न्स को जांचा जाता है, जिससे वर्तनी संबंधी समस्याएं, अक्षरों की खराब बनावट और इन सीखने संबंधी विकारों के अन्य संकेत पहचाने जा सकते हैं। यह एआई-आधारित तरीका शुरुआती स्क्रीनिंग को अधिक सुलभ बना सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां स्पीच-लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट की कमी है।
AI हस्तलेखन विश्लेषण में सफलता: बच्चों में डिस्लेक्सिया की पहचान

यूनिवर्सिटी एट बफ़ेलो के एक क्रांतिकारी अध्ययन ने दिखाया है कि किस तरह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) बच्चों में सीखने संबंधी विकारों की शुरुआती पहचान को हस्तलेखन विश्लेषण के माध्यम से बदल सकती है।

यह शोध 14 मई 2025 को जर्नल SN कंप्यूटर साइंस में प्रकाशित हुआ है, जिसमें एक ऐसा ढांचा प्रस्तुत किया गया है जो AI की मदद से बच्चों के हस्तलेखन में मौजूद सूक्ष्म पैटर्न्स को पहचानता है, जो डिस्लेक्सिया और डिस्ग्राफिया से जुड़े होते हैं। इस टीम का नेतृत्व कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग के SUNY डिस्टिंग्विश्ड प्रोफेसर वेणु गोविंदराजू ने किया, जिन्होंने पहले भी हस्तलेखन पहचान तकनीक में अग्रणी कार्य किया है, जिसका उपयोग अमेरिकी डाक सेवा द्वारा मेल छांटने के लिए किया जाता है।

"इन न्यूरोडेवलपमेंटल विकारों को जल्दी पकड़ना बेहद जरूरी है, ताकि बच्चों को समय रहते वह मदद मिल सके जिसकी उन्हें ज़रूरत है, इससे उनके सीखने और सामाजिक-भावनात्मक विकास पर नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा," गोविंदराजू ने बताया, जो इस अध्ययन के मुख्य लेखक भी हैं।

AI प्रणाली हस्तलेखन के कई पहलुओं का विश्लेषण करती है, जैसे अक्षर निर्माण, स्पेसिंग, लिखने की गति, दबाव और पेन की मूवमेंट। यह वर्तनी की गलतियों, संगठन संबंधी समस्याओं और अन्य संकेतों की पहचान कर सकती है, जो पारंपरिक मूल्यांकन में अक्सर छूट जाते हैं। पहले के शोध मुख्यतः डिस्ग्राफिया की पहचान पर केंद्रित थे, लेकिन यह नई पद्धति दोनों स्थितियों को एक साथ पहचानने का प्रयास करती है।

मॉडल विकसित करने के लिए शोधकर्ताओं ने यूनिवर्सिटी ऑफ नेवाडा, रेनो की एबी ओल्स्ज़ेव्स्की के साथ सहयोग किया, जिन्होंने डिस्ग्राफिया और डिस्लेक्सिया बिहेवियरल इंडिकेटर चेकलिस्ट (DDBIC) का सह-विकास किया है। टीम ने किंडरगार्टन से लेकर पांचवीं कक्षा तक के छात्रों के लिखावट के नमूने एकत्र किए हैं और इन डेटा का उपयोग AI मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए किया जा रहा है, जिससे स्क्रीनिंग प्रक्रिया पूरी की जा सके।

यह तकनीक देशभर में स्पीच-लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट और ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट की भारी कमी की समस्या को भी संबोधित करती है, जो आमतौर पर इन स्थितियों का निदान करते हैं। मौजूदा स्क्रीनिंग टूल्स, भले ही प्रभावी हों, अक्सर महंगे, समय लेने वाले होते हैं और एक बार में केवल एक ही स्थिति पर केंद्रित रहते हैं। AI-आधारित यह तरीका शुरुआती पहचान को अधिक व्यापक और खासकर कम संसाधन वाले समुदायों में सुलभ बना सकता है।

यह कार्य नेशनल AI इंस्टीट्यूट फॉर एक्सेप्शनल एजुकेशन का हिस्सा है, जो UB के नेतृत्व में एक शोध संगठन है और छोटे बच्चों में स्पीच और भाषा प्रोसेसिंग विकारों की पहचान व सहायता के लिए AI सिस्टम विकसित कर रहा है। समय रहते हस्तक्षेप संभव बनाकर, यह तकनीक दुनियाभर के लाखों बच्चों के शैक्षिक परिणामों में उल्लेखनीय सुधार ला सकती है।

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