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ओहायो अस्पताल ने फेफड़ों के कैंसर की पहचान में क्रांति लाने के लिए एआई का किया अग्रणी इस्तेमाल

यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स क्लीवलैंड मेडिकल सेंटर ने Qure.ai के साथ मिलकर फेफड़ों के कैंसर की जल्दी पहचान के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग शुरू किया है। FDA द्वारा स्वीकृत qXR-LN तकनीक रेडियोलॉजिस्ट्स के लिए 'दूसरी जोड़ी आंखों' की तरह काम करती है, जो छाती के एक्स-रे का विश्लेषण कर सूक्ष्म नोड्यूल्स की पहचान करती है जिन्हें सामान्यतः नजरअंदाज किया जा सकता है। यह एआई सिस्टम कैंसर की पहचान को स्टेज एक या दो में संभव बनाकर जीवित रहने की दरों में उल्लेखनीय सुधार लाने का लक्ष्य रखता है, जो आमतौर पर देर से पता चलने के मामलों में संभव नहीं हो पाता।
ओहायो अस्पताल ने फेफड़ों के कैंसर की पहचान में क्रांति लाने के लिए एआई का किया अग्रणी इस्तेमाल

ओहायो स्थित यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स क्लीवलैंड मेडिकल सेंटर ने वैश्विक हेल्थकेयर एआई नवोन्मेषक Qure.ai के साथ साझेदारी की है, जिससे फेफड़ों के कैंसर की पहचान और उपचार की प्रक्रिया में बदलाव लाया जा सके और समय रहते हस्तक्षेप कर हजारों जानें बचाई जा सकें।

फेफड़ों का कैंसर अमेरिका में सबसे घातक कैंसर बना हुआ है, जो स्तन, कोलन और प्रोस्टेट कैंसर से भी अधिक मौतों का कारण है। इसकी सबसे बड़ी चुनौती देर से पहचान है, क्योंकि अधिकांश मामलों में इसका पता तीसरे या चौथे चरण में चलता है, जब जीवित रहने की दर एकल अंकों में सिमट जाती है।

Qure.ai के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. समीर शाह बताते हैं, "हमें फेफड़ों के कैंसर को जल्दी पहचानने का तरीका चाहिए था। यह भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा है, और यहीं एआई मदद करता है।" FDA द्वारा स्वीकृत qXR-LN एल्गोरिद्म रेडियोलॉजिस्ट्स के लिए अतिरिक्त आंखों की तरह काम करता है, जो 6 से 30 मिमी आकार के संदिग्ध पल्मोनरी नोड्यूल्स की पहचान करता है, जिन्हें सामान्य जांच के दौरान नजरअंदाज किया जा सकता है।

यह एआई सिस्टम 1.5 करोड़ छाती के एक्स-रे के विशाल डेटा सेट पर प्रशिक्षित किया गया है, जिससे यह मानव आंख से अदृश्य सूक्ष्म पैटर्न भी पहचान सकता है। जब भी कोई संदिग्ध नोड्यूल पहचाना जाता है, एआई उसे स्वतः आगे की जांच के लिए चिन्हित कर देता है, जिससे कैंसर को पहले या दूसरे चरण में पकड़ने की संभावना बढ़ जाती है, जब उपचार की सफलता दर 60-70% तक पहुंच सकती है।

यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स में कार्डियोथोरेसिक इमेजिंग डिवीजन के प्रमुख डॉ. अमित गुप्ता बताते हैं कि भले ही सीटी स्कैन फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड है, लेकिन यह आमतौर पर उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों, जैसे धूम्रपान करने वालों तक ही सीमित रहता है। एआई-सक्षम एक्स-रे दृष्टिकोण व्यापक स्तर पर लागू हो सकता है, क्योंकि एक्स-रे विभिन्न चिकित्सकीय कारणों से नियमित रूप से किए जाते हैं और इसके लिए कम इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है।

यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल्स में चल रहा क्लिनिकल ट्रायल अगले 9-10 महीनों तक जारी रहने की उम्मीद है, जिसमें शोधकर्ता एआई की पहचान क्षमता की तुलना पारंपरिक रेडियोलॉजिस्ट्स की व्याख्या से करेंगे। यदि यह सफल रहा, तो यह तकनीक देशभर में फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल को बदल सकती है और भविष्य में अन्य कठिन-से-पहचाने जाने वाले कैंसरों के लिए भी विस्तार पा सकती है।

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